स्वतन्त्र नियामकीय आयोग के अर्थ एवं विशेषताएं (Independent Regulatory Commission: Meaning and Characteristics):
स्वतन्त्र नियामकीय आयोगों की स्वतन्त्रता(Independence of Independent Regulatory Commissions):
स्वतन्त्र नियामकीय आयोग के कार्य(Functions of Independent Regulatory Commissions):
स्वतन्त्र नियामकीय आयोगों की आलोचना(Criticism of the Independent Regulatory Commissions):
स्वतन्त्र नियामकीय आयोग के कार्य(Functions of Independent Regulatory Commissions):
स्वतन्त्र नियामकीय आयोगों की आलोचना(Criticism of the Independent Regulatory Commissions):
सूत्र अभिकरण का ही एक अन्य रूप ‘स्वतन्त्र नियामकीय आयोग’ है । इसका विकास संयुक्त राज्य अमेरिका की विशेष संवैधानिक प्रणाली से हुआ है । इन आयोगों की स्थापना का उद्देश्य समाज के शक्तिशाली आर्थिक वर्गों के कुछ क्रियाकलापों का नियमन कर सार्वजनिक हित की रक्षा व अभिवृद्धि करना है । औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप राज्य के कार्य क्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि हुई जिसका स्वाभाविक परिणाम कार्यपालिका की शक्ति में अत्यधक वृद्धि के रूप में देखने को मिला । इन परिस्थितियों में विधायिका (कांग्रेस) ने कार्यपालिका (अमेरिकी राष्ट्रपति) की शक्तियों को नियन्त्रित करने हेतु जो मार्ग निकाला वह स्वतन्त्र नियामकीय आयोगों का निर्माण था ।
स्वतन्त्र नियामकीय आयोगों की रचना व्यवस्थापिका के कानूनों द्वारा की जाती है ये आयोग आर्थिक क्रियाकलापों के नियमन हेतु कार्यपालिका के नियन्त्रण से मुका रहते हैं । डिमॉक के अनुसार- ”इन आयोगों को स्वतन्त्र इसलिये नहीं कहा जाता है कि उन पर व्यवस्थापिका कार्यपालिका व न्यायपालिका का नियन्त्रण नहीं होता बल्कि इसलिए कि वे शासन के स्थापित निष्पादक विभागों की परिधि से बाहर होते हैं ।”
इन आयोग को नियामकीय इसलिए कहा जाता है, क्योंकि ये अस्वस्थ प्रतियोगिता को दूर करने के लिये नागरिकों के कुछ आर्थिक क्रियाकलापों का नियन्त्रण व नियमन करते हैं ।
स्वतन्त्र नियामकीय आयोगों के लिये विभिन्न नामों का प्रयोग किया जाता रहा है । मुख्य कार्यपालिका के अधीन न होने के कारण इन्हें ‘शासन की शीर्षहीन शाखा’ (Headless Branch of the Government) कहा जाता है । इनके कार्य मिश्रित प्रकृति के होने के कारण इन्हें ‘शासन की चतुर्थ शाखा’ (Fourth Branch of the Government) भी कहा जाता रहा है ।
काँग्रेस द्वारा स्थापित व काँग्रेस के अधीन होने के कारण ये आयोग ‘काँग्रेस की भुजाएँ’ (Arms of the Congress) भी कहलाते हैं । ये आयोग स्वतन्त्र होते हैं, अंत: इन्हें ‘स्वायत्तता के द्वीप’ (Island of Autonomy) की संज्ञा भी दी जाती रही है ।
,फ्रांस और भारत से अलग संयुक्त राज्य अमेरिका में तीन प्रकार की लाइन एजेंसियाँ होती हैं- विभाग, सार्वजनिक निगम और स्वतंत्र नियामक आयोग । इन आयोगों की स्थापना सामाजिक हितों की सुरक्षा करने और उनको बढ़ावा देने के उद्देश्य से निजी आर्थिक गतिविधियों और निजी संपत्ति पर सार्वजनिक नियमन और नियंत्रण स्थापित करने के लिए की गई थी । पहले स्वतंत्र आयोग की स्थापना 1887 में की गई थी और इसका नाम था । अंतर-राज्यीय वाणिज्य आयोग । वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में नौ आईआरसी हैं ।
इनका गठन निम्न कालक्रम में किया गया था:
(i) दि इंटरस्टेट कॉमर्स कमीशन (1887).
(ii) दि फेडरल रिजर्व बोर्ड (1913).
(iii) दि फेडरल ट्रेड कमीशन (1914).
(iv) दि फेडरल पावर कमीशन (1930).
(v) दि फेडरल कम्युनिकेशन कमीशन (1934) .
(vi) दि सिक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (1934).
(vii) दि नेशनल लेबर रिलेशंस बोर्ड (1935).
(viii) दि यूनाइटेड स्टेट्स मारीटाइम कमीशन (1936).
(ix) दि सिविल एयरोनॉटिक्स बोर्ड (1940) .
स्वतन्त्र नियामकीय आयोगों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(1) ये आयोग किसी भी विभाग के अंग रूप में निर्मित नहीं होते हैं, अत: ये कार्यपालिका के नियन्त्रण से भी मुक्त रहते हैं ।
(2) इन आयोगों की अध्यक्षता किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं वरन् एक मण्डल द्वारा की जाती है ।
(3) स्वतन्त्र नियामकीय आयोग अपनी नीतियों के निर्माण एवं वित्तीय प्रबन्ध को स्वयं नियन्त्रित करने की क्षमता रखते हैं ।
(4) ये आयोग मुख्य कार्यपालिका (राष्ट्रपति) के प्रति उत्तरदायी न होने के कारण शीर्ष विहीन कहलाते हैं ।
(5) ये आयोग प्रशासकीय कार्यों के साथ-साथ उर्द्ध-विधायी (Quasi-Legislative) एवं अर्द्ध-न्यायिक (Quasi-Judicial) कार्य भी सम्पन्न करते हैं ।
(6) इन आयोगों में सभी वर्गों को समुचित प्रतिनिधित्व दिया जाता है । आयोग की सत्ता सदस्यों में बँटी रहती है ।
(7) आयोग के सदस्यों का कार्यकाल राष्ट्रपति के कार्यकाल से लम्बा होता है ।
राष्ट्रपति की पदावधि 4 वर्ष है, जबकि आयोगों का कार्यकाल 5 से 7 वर्ष होता है ।
(8) आयोगों को अपने कार्य के संचालन हेतु पूर्ण वित्तीय अधिकार प्रदान किये जाते हैं ।
(9) इन आयोगों में विशेषज्ञ कार्य करते हैं तथा इनका आकार अपेक्षाकृत छोटा होता है ।
स्वतन्त्र नियामकीय आयोगों की स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में एल. डी. ह्वाइट लिखते हैं- ”ये आयोग अमेरिकी विधायिका अर्थात् काँग्रेस से स्वतन्त्र नहीं हैं क्योंकि काँग्रेस इनकी रचना करती है, उनको शक्ति प्रदान करती है तथा उनको प्रतिवर्ष धन देती है । वह सदस्यों को पदच्युत कर करती है । ….. ये आयोग न्यायपालिका से भी स्वतन्त्र नहीं हैं, क्योंकि यदि कोई पक्ष याचिका प्रस्तुत करें तो न्यायपालिका उसके निर्णयों की पुनर्समीक्षा करती है । ये आयोग राष्ट्रपति से भी पूरी तरह स्वतन्त्र नहीं हैं क्योंकि राष्ट्रपति सीनेट की स्वीकृति से इसके सदस्यों को मनोनीत करता है ।”
स्वतन्त्र नियामकीय आयोगों द्वारा निम्नलिखित कार्य सम्पादित किये जाते हैं:
(i) इन आयोगों का प्रमुख कार्य समाज के हितों की रक्षा करना है ।
(ii) आयोगों द्वारा निजी उद्योगों व व्यक्तिगत सम्पत्ति का नियमन किया जाता है ।
(iii) जनता के हितों की हर सम्भव तरीके से रक्षा करना आयोग का कार्य है ।
(iv) व्यापार के क्षेत्र में कठोर नियन्त्रण रखना भी आयोग का दायित्व है ।
(v) आयोग देश में औद्योगिक प्रगति के कारण उत्पल होने वाली समस्याओं पर भी नियन्त्रण रखता है ।
स्वतन्त्र नियामकीय आयोगों की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की जाती है:
(1) आयोग विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका- इन तीनों में से किसी के प्रति भी उत्तरदायी नहीं है । यही कारण है कि उन्हें ‘अनुत्तरदायी के क्षेत्र’ (Areas of Unaccountability) एवं ‘अनुतरदायी आयोग’ (Irresponsible Commission) जैसे नामों से भी पुकारा जाता है ।
(2) आयोगों के कार्य-क्षेत्र में ऐसे बहुत से आर्थिक क्रियाकलाप आते हैं जिनके बारे में सरकारी विभाग भी कार्य करते हैं । ऐसे में कार्यों में दोहरापन आने की सम्भावना बनी रहती है ।
(3) कई बार आयोग के सदस्यों में तीव्र मतभेद होने के कारण संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । इससे प्रशासन में अराजकता उत्पन्न हो जाती है ।
(4) आयोगों का अस्तित्व ‘शक्ति-पृथक्करण के सिद्धान्त’ की अवहेलना करता प्रतीत होता है । एक ओर तो अमेरिकी संविधान में विधायिका कार्यपालिका एवं न्यायपालिका को पृथक-पृथक रखा गया है । दूसरी ओर, आयोग में इन तीनों के कार्यों को परस्पर मिश्रित कर दिया गया है ।
(5) आयोगों के हाथों में विधायी, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के कार्य मिश्रित कर देने से नागरिकों की स्वतन्त्रता खतरे में पड़ जाती है ।
(6) कभी-कभी आयोगों एवं सामान्य निष्पादन विभागों के अधिकार क्षेत्रों में टकराव की स्थिति उत्पन हो जाती है ।
(7) आयोगो का स्वतन्त्र अस्तित्व प्रशासनिक समन्वय के मार्ग में बाधा उत्पन्न करता है ।
(8) आयोगों पर एक आरोप यह लगाया जाता है कि वे राष्ट्रीय हित को भूलकर संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाते हैं तथा व्यक्तिगत हितों को अधिक महत्व देते हैं ।
उपर्युक्त आलोचनाओं के आधार पर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आयोगों को किस सीमा तक स्वतन्त्र रखा जाये ? इस सम्बन्ध में रॉबर्ट ई. कुशमैन लिखते हैं- ”यदि नियामक आयोग पूर्णतया स्वतन्त्र रखे जाते हैं, तो वे अत्यन्त महत्वपूर्ण नीतिनिर्धारण सम्बन्धी तथा प्रशासनिक कार्य को सम्पन्न करने के मामले में पूर्णतका अनुतरदायी बन जाते हैं । इसके विपरीत यदि आयोगों की स्वतन्त्रता छीन ली जाती है तो यह उनके न्यायिक तथा अर्द्ध न्यायिक कार्यों के निष्पक्ष सम्पादन के लिए एक गम्भीर धमकी बन जाती है ।
Thanks useful
ReplyDeleteअति महत्वपूर्ण
ReplyDeleteVery usefull content👍
ReplyDeleteThank you