राज्य सरकार और केंद्र सरकार में क्या समानता है ?

राज्य सरकार और केंद्र सरकार में क्या समानता है ? 


इस  सवाल का जबाब देना अत्यंत ही कठिन है है किन्तु असम्भव भी नहीं है मैंने बहुत  अच्छे से जब ध्यान दिया इस प्रश्न पे तो मुझे इसका कुछ हल प्राप्त हुआ है , जो आज मै आप लोगो के बीच इसे प्रस्तुत कर रहा हूं , बच्चो / साथियों

जैसा की हम सभी जानते है हमारा भारत एक लोतांत्रिक देश है , जहा जनता का जनता के लिए जनता के द्वारा सरकार चलती है , अत: जो जनता है वहीं हमारे देश का सर्वे - सर्वा होते हैं !




अब आते है मुद्दे कि बात पे रज्य और केंद्र ये दोनों ही हमारे देश की तरक्की और कार्य संचालन को गति प्रदान करने में एक चालक का काम करते है , दोनों की एक ही मकसद होता है जनता को हर तरह की सेवाएं प्रदान करना जैसे सड़क, पानी , बिजली , भोजन , मसाले, चिकित्सा, अच्छी  किस्म की फ़सल जो किसान लगा सके , इत्यादि आदि बहुत सी सुबिधाए ,और ये सभी दोनों सरकारों के सहयोग से ही संभव हो पाता है ,



इसके लावा संवैधानिक व्यवस्था में भी दोनों की समानता देखने को मिलती है ,


 राज्य सरकार के लिए - राज्य सूची में 61 आइटम (पहले 66 आइटम) शामिल हैं। समानता वांछनीय है लेकिन इस सूची में वस्तुओं पर आवश्यक नहीं है: कानून व्यवस्था, पुलिस बल, स्वास्थ्य देखभाल, परिवहन, भूमि नीतियां, राज्य में बिजली, गांव प्रशासन इत्यादि बनाए रखना राज्य विधायिका में इन विषयों पर कानून बनाने के लिए विशेष शक्ति है। लेकिन कुछ परिस्थितियों में, संसद राज्य सूची में उल्लिखित विषयों पर कानून भी बना सकती है, फिर राज्य परिषद (राज्यसभा) को 2/3 बहुमत के साथ एक प्रस्ताव पारित करना होगा कि यह इस राज्य सूची में कानून के लिए उपयुक्त है राष्ट्रीय हित। हालांकि राज्यों में राज्य सूची, लेख 24 9, 250, 252, और 253 राज्य स्थितियों के संबंध में कानून बनाने के लिए विशेष शक्तियां हैं, जिसमें केंद्र सरकार इन वस्तुओं पर कानून बना सकती है।



इसके अलावा

विधायिका स्तर पर केन्द्र-राज्य सम्बन्ध


1. अनु 31[A] के अनुसार राज्य विधायिका को अधिकार देता है कि वे निजी संपत्ति जनहित हेतु विधि बना कर ग्रहित कर ले परंतु ऐसी कोई विधि असंवैधानिक/रद्द नहीं की जायेगी यदि यह अनु 14 व अनु 19 का उल्लघंन करे परंतु यह न्यायिक पुनरीक्षण का पात्र होगा किंतु यदि इस विधि को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु रखा गया और उस से स्वीकृति मिली भी हो तो वह न्यायिक पुनरीक्षा का पात्र नहीं होगा।



2. अनु 31[B] के द्वारा नौवीं अनुसूची भी जोड़ी गयी है तथा उन सभी अधिनियमों को जो राज्य विधायिका द्वारा पारित हो तथा अनुसूची के अधीन रखें गये हो को भी न्यायिक पुनरीक्षा से छूट मिल जाती है लेकिन यह कार्य संसद की स्वीकृति से होता है। 

3. अनु 200 राज्य का राज्यपाल धन बिल सहित बिल जिसे राज्य विधायिका ने पास किया हो जो 

राष्ट्रपति की सहमति के लिये आरक्षित कर सकता है। 


 4. अनु 288[2] राज्य विधायिका को करारोपण की शक्ति उन केन्द्रीय अधिकरणों पर नहीं देता जो कि जल संग्रह, विधुत उत्पादन, तथा विधुत उपभोग, वितरण, उपभोग, से संबंधित हो ऐसा बिल पहले राष्ट्रपति की स्वीकृति पायेगा !

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